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________________ ( ५९ ) करना यह सोच कर बोलने लगा । पूर्वभवके अभ्याससे बाल्यावस्था होते भी इसका समकित आदि दृढ है । पूर्वभवके ही अभ्याससे संस्कार दृढ रहते है." __ पश्चात् शुकराजने भी यह संपूर्ण बात निष्कपट भावसे स्वीकार की । केवली महाराजने पुनः कहा कि, "हे राजपुत्र ! इसमें आश्चर्य ही क्या? यह संसार नाटकके समान है। सर्वजीवोंने परस्पर सब प्रकारके सम्बंध अनंत बार पाये हैं । कारण कि जो इस भवमें पिता है, वह दूसरे भवमें पुत्र हो जाता है, पुत्र है वह पिता हो जाता है, स्त्री है वह माता हो जाती है और माता है वह पिता हो जाता है। ऐसी कोई भी जाति नहीं,योनि नहीं,स्थान नहीं तथा कुल नहीं कि जहां सर्व प्राणी अनेकों बार जन्मे तथा मरे न हों। इस लिये सत्पुरुषने समता रख कर किसी भी वस्तु पर राग, द्वेष न रखना चाहिये । केवल व्यवहार-मार्ग अनुसरण करना उचित है" पश्चात् राजाको संबोधन करके श्रीदत्त मुनि बोले कि, "हे राजन् ! मुझे ऐसा ही संबन्ध विशेष वैराग्यका कारण हुआ है, सो चित्त देकर सुन--- श्रीदेवीके रहनेके मंदिर समान श्रीमंदिरपुर नामक नगरमें एक स्त्रीलंपट, कपटी तथा दुर्दान्त (जो किसीसे जीता न जा सके ) सूरकान्त नामक राजा राज्य करता था । उसी नगरमें महान उदार सोम नामक श्रेष्ठि (सेठ) रहता था।
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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