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________________ (७९३) अर्थः--- वे श्रीगुणरत्न गुरुवर्य षड्दर्शनसमुच्चयवृत्ति क्रियारत्नसमुच्चय और विचारसमुच्चय ग्रन्थोंके रचयिता और श्रीभुवनसुन्दरआदि आचार्योके विद्यागुरु हुए ॥४॥ श्रीसोमसुन्दरगुरु--प्रवरास्तुर्या अहार्यमहिमानः । येभ्यः संततिरुच्चै--रभवद् द्वेधा सुधर्मभ्यः ॥५॥ अर्थः--उत्कृष्टमहिमावन्त श्रीसोमसुन्दर गुरुवर्य चौथे शिष्य हुए. इन द्रव्यसे तथा भावसे श्रेष्ठ धर्मात्मा गुरुवर्यसे बहुत शिष्य संतति बढी. ॥५॥ यतिजीतकल्पविवृत--श्व पंचमाः साधुरत्नसूरिवराः ॥ यैर्मादृशोऽप्यकृष्यत, करप्रयोगेण भवकूपात् ॥६॥ अर्थः--यतिजीतकल्पकी व्याख्या करनेवाले श्रीसाधुरत्नसरिवर पांचवें शिष्य हुए, जिन्होंने हाथ लम्बा करके मेरे समान सामान्य व्यक्तिका संसाररूप कुएमेंसे उद्धार किया ॥६॥ श्रीदेवसुन्दरगुरोः, पट्टे श्रीसोमसुन्दरगणेन्द्राः ॥ युगवरपदवी प्राप्ता--स्तेषां शिष्याश्च पश्चैते ॥७॥ अर्थः-श्रीदेवसुन्दरगुरुके पाट पर श्रीसोमसुन्दर गुरु हुए. उनके युगप्रधान पदवी पाये हुए ये पांच शिष्य हुए ॥७॥ मारीत्यवमनिराकृति-सहस्रनामस्मृतिप्रभृतिकृत्यैः ॥ श्रीमुनिसुन्दरगुरव-श्चिरंतनाचार्यमहिमभृतः ॥८॥
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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