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________________ (७८६) सहित समकितको भय, लोभ, लज्जा आदि दोषोंसे अतिचार न लगाते हुए एक मास तक पालना, और त्रिकाल देवपूजा आदि करना।२ व्रतप्रतिमा, उसमें दो मास तक खंडना तथा विराधना बिना पांच अणुव्रत पालना तथा प्रथमप्रतिमाकी क्रिया भी करना । ३ सामायिकप्रतिमा, उसमें तीन मास तक दोनों समय प्रमाद छोडकर दो बार सामायिक करना तथा पूर्वोक्त प्रतिमाकी क्रिया भी करना। ४ पौषधप्रतिमा उसमें पूर्वोक्त प्रतिमाके नियम सहित चार मास तक चार पर्वतिथिमें अखंडित और परिपूर्ण पौषध करना । ५ प्रतिमाप्रतिमा अर्थात् कायोत्सर्गप्रतिमा, उसमें पूर्वोक्तप्रतिमाकी क्रिया सहित पांच मास तक स्नानका त्यागकर, रात्रिम चौविहार पच्चखान करके, दिनमें ब्रह्मचर्य पालना तथा धोतीका कांछ छूटी रख चार पर्वतिथिको घरमें, घरके द्वारमें अथवा बाजारमें परीपह ( असह्य ) उपसर्गसे न डगमगते समग्र रात्रि तक काउस्सग्ग करना। आगे जिन प्रतिमाओंका वर्णन किया जाता है, उन सबमें पूर्वोक्त प्रतिमाकी क्रिया सम्मिलित कर लेनी चाहिये । ६ ब्रह्मचर्यप्रतिमा, उसमें छः मास पर्यंत निरतिचार ब्रह्मचर्यव्रतका पालन करना। ७ सचित्तपरिहारप्रतिमा, उसमें सात मास तक सचित्तवस्तुका त्याग करना । ८ आरंभपरिहारप्र'तिमा, उसमें आठ मास तक कुछ भी आरंभ स्वयं न करना । ९ प्रेषणपरिहारप्रतिमा, उसमें नवमास तक अपने नौकरआदि
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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