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________________ ( ७१६ ) लाख द्रव्य खर्च करके महापूजा करी, और मनवांछित लाभ होने से बारह वर्ष बाद पीछा आया तब हर्षसे एक करोड रुपये खर्च कर जिनमंदिरमें महापूजाआदि उत्सव किया । इसी भांति पुस्तकादिस्थित श्रुतज्ञानकी कपूरआदि वस्तुसे सामान्य पूजा तो चाहे जभी की जा सकती है। मूल्यवान वत्रआदि से विशेष पूजा तो प्रतिमास शुक्लापंचमी के दिन श्रावक करना चाहिये । यह करने की शक्ति न होवे तो जघन्यसे वर्ष में एक बार तो करना ही चाहिये । यह बात जन्मकृत्य - में आये हुए ज्ञानभक्तिद्वार में विस्तार से कही जावेगी । इसी प्रकार नवकार, आवश्यकसूत्र, उपदेशमाला, उत्तराध्ययन इत्यादि ज्ञान दर्शन और विविध प्रकारके तप संबंधी उजमणे में जघन्यसे एक उजमणा तो प्रतिवर्ष यथाविधि अवश्य करना चाहिये. कहा है कि- मनुष्यों को उजमणा करनेसे लक्ष्मी श्रेष्ठ स्थानमें प्राप्त होती है, तपस्या भी सफल होती है और निरन्तर शुभध्यान, समकित का लाभ, जिनेश्वर भगवान्की भक्ति तथा जिनशासनकी शोभा होती है । तपस्या पूरी होने पर उजमणा करना वह नये बनाये हुए जिनमंदिर पर कलश चढाने के समान, चांवल से भरे हुए पात्र ऊपर फल डालने के समान अथवा भोजन कर लेने पर तांबूल देने के समान है, शास्त्रोक्त विधिके अनुसार लाख अथवा करोडवार नवकारकी गणनाकर जिनमंदिरमें स्नात्रोत्सव,
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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