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________________ ( ७१५) द्रव्यसे सवा २ करोड स्वर्णमुद्राकी कीमत के पांच माणिक्य रत्न खरीदे, और अन्त समय पर मुझे कहा कि, " श्रीशत्रुंजयगिरनार और कुमारपालपट्टन में निवास करनेवाले भगवानको एक २ रत्न अर्पण करना, और दो रत्न तू अपने लिये रखना । पश्चात् उसने वे तीनों रत्न स्वर्णजडित करके शत्रुजय निवासी ऋषभ भगवान्को, गिरनार निवासी श्रीनेमिनाथजीको तथा पट्टनवासी श्रीचंद्रप्रभजीको कंठाभरणरूपमें अर्पण किये | ܕܕ एक समय श्री गिरनारजी पर दिगंबर तथा श्वेताम्बर इन दोनोंके संघ एकही साथ आ पहुंचे और ' हमारा तीर्थ ' कह कर परस्पर झगडा करने लगे । तब ' जो इन्द्रमाला पहिरे उसका यह तीर्थ है ' ऐसे वृद्धों के वचनसे पेथड श्रेष्ठीने छप्पन घडी प्रमाण सुवर्ण देकर इन्द्रमाला पहिरी, और याचकोंको चार घडी सुवर्ण देकर यह सिद्ध किया कि तीर्थ हमारा है । इसी प्रकार से पहिरावणी, नई धोतियां, भांति भांति के चन्दुए, अंगलूहणे, दीपकके लिये तेल, चंदन, केशर, भोगआदि जिनमंदिरोपयोगी वस्तुएं प्रतिवर्ष शक्त्यनुसार देना | वैसे ही उत्तमअंगी, बेलबूटों की रचना, सर्वांगके आभूषण, फूलघर, केलिघरपुतली के हाथमें के फव्वारे इत्यादि रचना तथा नानाप्रकार के गायन, नृत्य आदि उत्सवसे महापूजा तथा रात्रिजागरण करना, जैसे कि एक श्रेष्ठीने समुद्र में मुसाफिरी करनेको जाते समय एक
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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