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________________ (७०७) रेखाओंसे घिरी हुई भगवान्की प्रतिमा ऐसी शोभने लगी मानो नीलवस्त्रोंसे पूजी गई हो. श्रावकोंने दीपती दीपशिखाओं युक्त भगवान्की आरती करी. वह दीपती औषधिवाले पर्वतके शिखरके समान शोभायमान थी. अरिहंतके परमभक्त उन श्रावकोंने भगवानको वन्दना करके घोडेकी भांति आगे होकर स्वयं रथ खींचा. उस समय नगरवासी जनोंकी स्त्रियोंने रासक्रीडा शुरू की. चारों ओर श्राविकाएं मंगलगीत गाने लगी. अपार केशरका जल रथमें से नीचे गिरता था जिससे मार्गमें छिटकाव होने लगा. इस प्रकार प्रत्येक घरकी पूजा ग्रहण करता हुआ रथ नित्य धीरे धीरे संप्रति राजाके द्वारमें आता था. राजा उसी समय रथकी पूजाके लिये तैयार होकर फणसफलके समान रोमांचित शरीर हो वहां आता था. और नवीन आनन्दरूप सरोवरमें हंसकी भांति क्रीडा करता हुआ रथमें विराजमान प्रतिमाकी अष्टप्रकारीपूजा करता था. __महापद्मचक्रीने भी अपनी माताका मनोरथ पूर्ण करने के हेतु बडी धूमधामसे रथयात्रा करी. कुमारपालकी करी हुई रथयात्रा इस प्रकार कही गई है:--चैत्रमासकी अष्टमीके दिन चौथे प्रहरमें मानो चलते हुए मेरूपर्वतके समान व सुवर्णमय विशाल दंडके ऊपर स्थित ध्वजा, छत्र, चामर इत्यादि वस्तुओंसे देदीप्यमान सुवर्णमय रथ महान ऋद्धिके साथ निकलता था, उस समय हर्षसे नगरवासी लोग एकत्र होकर मंगलकारी जय
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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