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________________ (६८९) अक्षयनिधितप, दमयंतीतप, भद्रश्रेणीतप, महाभद्रश्रेणीतप, संसारतारणतप, अट्ठाइ, पक्षक्षमण, मासक्षमणआदि विशेष तपस्याएं भी यथाशक्ति करना । रात्रिको चौविहार तथा तिविहारका पञ्चखान करना । पर्वमें विगयका त्याग तथा पौषध, उपवासआदि करना । प्रतिदिन अथवा पारणेके दिन अतिथिसंविभागका नियम अवश्य लेना । इत्यादि___पूर्वाचार्योंने चातुर्मासके जो अभिग्रह कहे हैं, वे इस प्रकार है: ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार और वीर्याचार आश्रयी द्रव्यादिभेदसे अनेकप्रकारके चातुर्मासिक अभिग्रह होते हैं. यथाः-- तत्र ज्ञानाचारमें मूलसूत्र पठनरूप सज्झाय करना, व्याख्यान सुनना, सुने हुए धर्मका चिन्तवन करना और यथा शक्ति शुक्लपक्षकी पंचमीके दिन ज्ञानपूजा करना (१) दर्शनाचारमें जिनमंदिरमें झाडना, लीपना, गुहलि (स्वस्ति) मांडना आदि, जिनपूजा, चैत्यवन्दन और जिनबिंबको उबटन करके निर्मल करना आदि कार्य करना. (२) चारित्राचारमें जोंक छुडाना नहीं, जूं तथा शरीरमें रहे हुए गिंडोले नहीं डालना, कीडेवाली बनस्पतिको खार न देना, काष्ठमें अग्निमें तथा धान्यमें त्रसजीवकी रक्षा करना. किसीको कष्ट न देना, आक्रोश न करना, कठोर वचन न बोलना, देवगुरुके सौगंद न खाना, चुगली न करना, दूसरेका अपवाद नहीं करना, माता
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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