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________________ (४८) जं कोडीए पुणं कामिअआहारभोइआए उ । तं लहइ तत्थ पुण्णं एगोवासेण सेत्तुंजे ॥ ५ ॥ जं किंचि नाम तित्थं सग्गे पायालि माणुसे लोए । तं सव्वमेव दिटुं पुंडरीए वंदिए संते ॥ ६ ॥ पडिलंभंते संघं दिट्ठमदिढे अ साहु सित्तुं जे । कोडिगुणं च अदिढे दिदैउ अणंतगं होइ ॥ ७ ॥ नवकारपोरिसीए पुरिमड्डेगासणं च आयामं । पुंडरिअं च सरंतो फलकखी कुणइ अभत्तटुं ॥ ८ ॥ छठमदसमदुवालसाण मासद्धमासखमणाणं । तिगरणसुद्धो लहई सित्तजं संभरतो अ ॥ ९ ॥ नवि तं सुवण्णभूमी सणदाणेण अन्नतित्थेसु । जं पावइ पुण्णफलं पूयाण्हवणेण सित्तुंजे ॥ १० ॥ धूवे पखुववासो मासक्खणं कपुरधूवामि । कत्तिअमासक्खवणं साहू पडिलाभिए लहइ । ११ ॥ शत्रुजयतीर्थका ध्यान करनेसे हजार पल्योपमके बराबर अशुभकर्मका स्थितिक्षय हो जाता है, यात्राकी वाधा (मानता) लेनेसे लाख पल्योषमके समान अशुभकर्मकी स्थितिका क्षय हो जाता है और शर्बुजयको जानेके मार्गमें पैर रखनेसे एक सागरो. पमके बराबर अशुभ कर्मकी स्थितिका क्षय होता है । शत्रुजय. पर्वत ऊपर श्रीआदिनाथ भगवानके दर्शन करनेसे तिर्यंच व नारकी इन दो दुर्गतियोंका नाश होता है । उसी तरह कोई
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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