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( ४७ ) १०८ नाम कहे हैं । इसी अवसर्पिणीमें ऋषभदेव भगवानसे लेकर चार तीर्थंकरोंका यहां समवसरण हुआ, है तथा भविष्यमें नेमिनाथके सिवाय बाकी १९ तीर्थकरोंका समवसरण यहां होनेवाला है। इसी प्रकार पूर्वकालमें यहां अनन्त सिद्ध हुए हैं व भविष्यकालमें भी होवेंगे, इसी कारण इस तीर्थको सिद्ध क्षेत्र कहते हैं । सारे जगत् के स्तुति करने योग्य महानिदेह-क्षेत्रमें विचरनेवाले शाश्वत तीर्थकर भी इस तीर्थकी बहुत प्रशंसा करते हैं, उसी प्रकार वहां के भव्य जीव भी नित्य इसका स्मरण करते हैं। जिस भांति उत्तमभूमिमें बोया हुआ बीज कईगुणा हो जाता है, उसी भांति इस शाश्वतीर्थमें की हुई यात्रा, पूजा, तपस्या, स्नात्र तथा दान ये सर्व अनन्तगुण फल देते हैं। कहा है कि
पल्योपमसहस्रं च ध्यानालनमभिग्रहात् । दुष्कर्म क्षीयते मार्गे, सागरोपमसंमितम् ॥ १ ॥ शत्रुजये जिने दृष्टे, दुर्गतिद्वितयं क्षिपेत् । सागराणां सहस्रं च, पूजास्नात्रविधानतः ॥ २॥ एकैकस्मिन्पदे दत्ते, पुंडरीकगिरि प्रति । . भवकोटिकृतेभ्ये ऽपि, पातकेभ्यः प्रमुच्यते ॥ ३ ॥ अन्यत्र पूर्वकोट्या यत् , शुभध्यानेन शुद्धधीः । प्राणी बध्नाति सत्कर्म, मुहूर्तादिह तद् ध्रुवम् ॥ ४ ॥
सतत् ।