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________________ आरम्भोंको यथाशक्ति त्याग करना चाहिये. आरम्भ बिना अपने कुटुम्बका निर्वाह न कर सके तो कुछ आरम्भ तो गृहस्थको करना पडता है, पर सचित्त आहारका त्याग करना अपने हाथमें होनेसे और सहज साध्य होनेसे उसे अवश्य करना चाहिये. विशेष रुग्णावस्थाआदि कारणसे सर्व सचित्तआहारका त्याग न किया जा सके, तो एक दो वस्तुका नाम ले खुली रखकर शेष सर्व सचित्तवस्तुओंका नियम करना. इसी प्रकार आश्विन तथा चैत्रकी अट्ठाइ, तथा गाथामें प्रमुखशब्द है जिससे, चौमासेकी तथा संवत्सरीकी अट्ठाइ, तीन चातुर्मास (आषाढ, कार्तिक और फाल्गुन) और संवत्सरी आदि पर्वोमें उपरोक्त विधिके अनुसार विशेष धर्मानुष्ठान करना. कहा है कि--सुश्रावकने संवत्सरीकी, चौमासीकी तथा अट्ठाइकी तिथियोंमें परमादरसे जिनराजकी पूजा, तपस्या तथा ब्रह्मचर्यादिक गुणोंमें तत्पर रहना. सर्व अट्ठाइयोंमें चैत्र और आश्विनकी अट्ठाइयां शाश्वती हैं. कारण कि, उन दोनों अट्ठाइयों में वैमानिकदेवता भी नंदीश्वरद्वीपआदि तीर्थों में तीर्थयात्रादि उत्सव करते हैं. कहा है कि-दो यात्राएं शाश्वती है. जिसमें एक चैत्रमासमें और दूसरी आश्विनमासमें, अट्ठाइ महिमारूप होती हैं. ये दोनों यात्राएं शाश्वती हैं. उनको सम्पूर्ण देवता तथा विद्या. धर नन्दीश्वरद्वीपमें करते हैं. तथा मनुष्य अपने २ स्थानों में करते हैं. इसी प्रकार तीन चातुर्मास, संवत्सरी छः पर्व तिथियां
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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