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________________ (६६२) का धर्म आराधने के लिये, पंचमी पांच ज्ञान आराधनेके लिये, अष्टमी आठों कौका क्षय करने के लिये, एकादशी ग्यारह अंगकी सेवाके निमित्त तथा चतुर्दशी चौदहपूर्वोकी आराधनाके लिये जानो. इन पांचों पर्यों में अमावस्या, पूर्णिमा सम्मिलित करनेसे प्रत्येक पक्षमें छः उत्कृष्ट पर्व होते हैं. सम्पूर्ण वर्षमें तो अट्ठाइ, चौमासी आदि बहुतसे पर्व हैं. पर्वके दिन आरम्भका सर्वथा त्याग न हो सके तो भी अल्पसे भी अल्प आरम्भ करना. सचित्त आहार जीवहिंसामय होनेसे, वह करनेमें बहुतही आरम्भ होता है, अतएव उपस्थितगाथामें आरम्भ वर्जनेको कहा है, जिससे पर्वके दिन सचित्तआहार अवश्य वर्जना, ऐसा समझना चाहिये. मछलियां (सचित्त) आहारकी अभिलाषासे सातवीं नरकभूमिको जाती हैं. इसलिये सचित्त आहार मनसे भी मांगना योग्य नहीं; ऐसा वचन है. इसलिये मुख्यतः तो श्रावकने, सदैव सचित्त आहार त्यागना चाहिये, परन्तु यदि वैसा न कर सके तो पर्वके दिन तो अवश्य ही त्यागना चाहिये. इसी प्रकार पर्वके दिन स्नान करना, बाल समारना, सिर गूंथना, वस्त्र आदि धोना अथवा रंगना, गाडी हलआदि जोतना, धान्यआदिके मूडे बांधना, चरखाआदि यंत्र चलाना, दलना, कूटना, पीसना, पान, फल, फूल आदि तोडना, सचित्त खडिया, हिरमची आदि बांटना, धान्य आदि लीपना, माटी आदि खोदना, घरआदि बांधना इत्यादि संपूर्ण
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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