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झरोखेमें बैठ कर नगरकी शोभा देख रहा था। इतने ही में नगरमेंसे बाहिर निकलता हुआ यात्रियोंका पवित्र संघ उसकी दृष्टिमें आया । राजाने अपने एक सेवकसे पूछा कि " यह क्या है ? " सेवकने वहां जाकर ज्ञात किया व पुनः वापस आकर राजासे निवेदन किया कि " हे महाराज ! यह शंखपुर (शंखेश्वर) से आया हुआ संघ विमलाद्री नामक महातीर्थ (पालीताणा ) को जाता है."
यह सुन कौतुक वश राजा उस संघमें गया, वहां श्रुतसागर नामक आचार्यको देखकर वंदना करी और शुद्ध परिणामसे पूछा कि, “ इस जगतमें विमलाद्री यह कौन है ? यह तीर्थ कैसे हुआ तथा इसका क्या माहात्म्य है !"
क्षीराश्रव नामक महालब्धि धारक आचार्य श्रुतसागर सूरीने राजाके वचन सुनकर कहा___"हे राजन् ! धर्म ही से इष्ट मनोरथकी सिद्धी होती है, कारण कि जगतमें धर्म एक मात्र सारभूत है, धर्मो में भी अहेत्प्रणीत धर्म श्रेष्ठ है और उसमें भी तत्वश्रद्धात्नरूप समकित श्रेष्ठ है। कारण कि समकित बिना समस्त अज्ञानकष्ट रूप क्रियाएं बांझ वृक्षकी भांति निष्फल है। तत्त्वश्रद्धानरूप समकितमें वीतराग देव, शुद्ध प्ररूपक गुरू तथा केवलिभाषित धर्म ये तीन तत्व आते हैं । इन तीनों तत्वोंमें वीतराग देव मुख्य हैं। सर्व वीतरागोंमें प्रथम युगार्दाश श्री ऋषभदेव भगवान हैं। इन