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________________ ( ४४ ) यही कारण है कि पुण्यके बिना मनुष्योंको मनवांछित वस्तु कभी प्राप्त नहीं होती । यद्यपि जितारि राजासे इर्षा रखनेवाले उस समय सैकडों राजा थे पर बडे ही आश्चर्य की बात है कि कोई भी कुछ उपद्रव न कर सका, अथवा यह मानना चाहिये कि जो स्वयं जितारि शत्रुको जीतने वाला है उसका पराभव कौन कर सकता है ? कुछ समय पश्चात् रति प्रीतिके समान दो स्त्रियों से कामदेवको लज्जित करता तथा दूसरे राजाओंके गर्वको खंडन करता हुआ राजा जितारि अपने देशकी ओर विदा हुआ। वहां पहुंच कर हंसी तथा सारसी दोनोंको पट्टाभिषेक किया । राजा अपने दोनों नेत्रोंकी भांति दोनों पर समान प्रीति रखता था, परन्तु दोनों के मन में सपत्नीभाव ( सौतपन ) से स्वाभाविक भ्रम पैदा होगया। इससे दोनों का जो वास्तविक प्रेम था वह स्थिर न रह सका । हंसी सरल स्वभाव थी, किन्तु सारसीकी कपटी प्रकृति थी । समयानुसार उसने राजाको प्रसन्न करने के हेतु कपट करके मायासे बहुत भारी कर्म संचय किया । जीव कपट करके व्यर्थ अपने आपको परलोकमें नीच गति में ले जाते हैं. यह उनकी कितनी अज्ञानता है ? हंसी तो सरल प्रकृति थी ही । उसने अपने सद्गुणोंसे कर्म बंधनों को शिथिल कर दिया तथा राजाको भी मान्य होगई एक समय राजा जितारी हंसी व सारसीके साथ
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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