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________________ (६३८) अर्थः-मासखमणमें तेरह कम करे वहां तक तथा सोलह उपवास (चात्तीसभक्त) से लेकर एक एक उपवास (दो दो भक्त) कम करते ठेठ चोथभक्त ( एक उपवास ) तक तपस्या करनेकी भी मेरेमें शक्ति नहीं ऐसे ही आंबिल आदि, पोरिसी तथा नवकारसी तक चितवन करना. ॥ २५ ॥ जं सक्कइ तं हिअए, धरेत्तु पारेत्तु पेहए पोत्तिं ।। दाउं वंदणमसढो, तं चिअ पच्चक्खए विहिणा ॥ २६ ॥ अर्थः-उपरोक्त तपस्यामें जो तपस्या करनेकी शक्ति होवे वह हृदयमें निश्चित करना और काउस्सग्ग पार, मुंहपत्ति पडिलेहण कर लेना.पश्चात् सरलभावसे वंदना देकर जो तपस्या मनमें धारी होवे उसका यथाविधि पच्चखान लेना ।। २६ ॥ इच्छामो अणुसहिति भणिअ उवविसिअ पढ़इ तिणि थुई ।। मिउसद्देणं सक्क-स्थयाइ ता चेइए वंदे ॥ २७ ॥ अर्थः-पश्चात् " इच्छामो अणुसद्धि" कह नीचे बैठ कर मृदुस्वरसे तीन स्तुतिका पाठ कहे. तत्पश्चात् “नमोत्थुणं" आदि कह चैत्यवंदन करे ॥ २७॥ अह पक्खिअं चउद्दसिदिणमि पुव्वं व तत्थ देवसि ॥ सुत्ततं पडिकमिउं, तो सम्ममिमं कमं कुणइ ॥ २८ ॥ अर्थः-अब चतुर्दशीके दिन करनेका पक्खीप्रतिक्रमण कहते हैं. उसमें प्रथम उपरोक्त कथनानुसार देवसीप्रतिक्रमण
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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