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________________ ( ६३७ ) पुत्रं व पुत्तिपेण--वंदणमालो सुत्तपढणं च ॥ वंदण खामणवंदण - गाहातिगपढणमुस्सग्गो || २२ ॥ अर्थ:- पूर्वकी भांति मुहपत्तिकी पडिलहणा, वंदना तथा आलोचना और प्रतिक्रमण सूत्रका पाठ करना तत्पश्चात् वंदना, खामणा, पुनः वंदना कर आयरिअ उवज्झाए इत्यादि तीन गाथाएं कह काउस्सग्ग करना ||२२|| रत्थ य चिंतइ संजम-- जोगाण न होई जेण मे हाणी ॥ तं पडिवज्जामि तवं, छम्मासं ता न काउमलं ॥ २३ ॥ अर्थः- उस काउस्सग्गमें इस प्रकार चिंतन करे कि, " जिससे मेरे संयमयोगकी हानि न हो, उस तपस्याको मैं अंगीकार करूं. प्रथम छःमासी तप करनेकी तो मेरेमें शक्ति नहीं ॥ २३ ॥ गाइ इगुणतीसूणयंपि न सहो न पंचमासमवि ॥ एवं चउ-ति-दु-मासं, न समत्यो एगमासंपि ॥ २४ ॥ अर्थ :-- छः मासी में एक दिन कम, दो दिन कम ऐसा करते उन्तीस दिन कम करें तो भी उतनी तपस्या करने की मुझमें शक्ति नहीं, वैसे ही पंचमासी, चौमासी, त्रिमासी, द्विमासी तथा एक मासखमण भी करनेकी मेरेमें शक्ति नहीं ॥ २४ ॥ जा तंपि तेरसूणं, चउतीसइमाइ णो दुहाणीए || जा चउथं तो आयं त्रिलाइ जा पोरिसी नमो वा ॥ २५ ॥
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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