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________________ ६३४) दाऊण वंदणं तो, पणगाइसु जइसु खामए तिगि | किइकम्म करिय आयरि-अमाइ गाहातिगं पढए ॥ १० ॥ अर्थः- पश्चात् वन्दना करके पांचआदि साधु होवे तब तीन आदि साधुओंको खमावे और "आयरिअ" इत्यादि तीन गाथाओंका पाठ कहे। इअ सामाइअउस्स-ग्गसुत्तमुच्चरिअ काउसग्गठिओ। चिंतइ उज्जोअदुगं, चरित्तअइआरसुद्धिकए ॥ ११ ॥ अर्थः- इस प्रकार सामायिकसूत्र तथा कायोत्सर्गसूत्रका पाठ कह, चरित्राचारशुद्धिके लिये काउस्सग्ग कर दो लोगस्सका चिन्तवन करना ॥ ११॥ विहिणा पारिअ संम-त्तसुद्धिहेउं च पढइ उज्जो । इह सव्वलोअअरिहं-तचेइआराहणुस्सग्गं ॥ १२ ॥ काउं उज्जोअगरं, चिंतिअ पारे सुद्धसंमत्तो । पुक्खरवरदीवड़े, कड्डइ सुअसोहणनिमित्तं ॥ १३ ॥ अर्थः- तदनंतर यथाविधि काउस्सग्गको पार कर सम्यक्वशुद्धिके हेतु प्रकट लोगस्स कहे, वैसे ही सर्वलोकव्यापी अरिहंतचैत्योंकी आराधनाके लिये काउस्सग्ग कर उसमें एक लोगस्स चितवन करे और उससे शुद्धसम्यक्त्वधारी होकर काउस्सग्ग पारे. तत्पश्चात् श्रुतशुद्धिके लिये पुक्खरवरदी कहे ॥ १२-१३ ॥
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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