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हुआ, तब उसने चौबीस हजार मन धान्य अनाथलोगोंको दिया, एक हजार बन्दियोंको छुडाया, छप्पन राजाओंको छुडाया, जिनमंदिर खुलवाये, श्रीजयानन्दसूरि तथा श्रीदेव. सुन्दरसूरिके पगले स्थापित किये इत्यादि उसके बहुतसे धर्मकृत्य प्रसिद्ध हैं. इसलिये श्रावकने विशेषकर भोजनके समय अनुकम्पादान अवश्य करना चाहिये. दरिद्रीमनुष्यने भी घरमें अनआदि इतना बनाना कि, जिससे कोई गरीब आवे तो यथाशक्ति उसकी आसना वासना की जा सके. इसमें कोई विशेष खर्च भी नहीं होता. कारण कि, गरीबलोगोंको थोडेहीमें सन्तोष हो जाता है. कहा है कि- कवल (ग्रास) में से एक दाना नीचे गिर पडे तो हार्थीके आहारमें तो उससे क्या कमी हो सकती है ? परन्तु उसी एक दाने पर कीडीका तो सम्पूर्ण कुटुम्ब निर्वाह कर लेता है. दूसरे उपरोक्त कथनानुसार ऐसा निरवद्य आहार किंचित अधिक तैयार किया हो तो उससे सुपात्रका योग मिल जाने पर शुद्ध दान भी दिया जा सकता है ।
इसी प्रकार माता, पिता, बन्धु, भगिनी, पुत्र, कन्या, पुत्रवधू, सेवक, रोगी, कैदी तथा गाय आदि जानवरोंको उचित भोजन दे, पंचपरमेष्ठीका ध्यानकर तथा पचखान और मयानका यथोचित उपयोग रख करके रुचिके अनुसार भोजन करना. कहा है कि -उत्तमपुरुषों ने प्रथम पिता, माता, बालक, गर्भिणी, वृद्ध, और रोगी इनको भोजन करा पश्चात् स्वयं भोजन करना.