SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 635
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (६१२) से सन्मार्गमें लगाकर यथाशक्ति अनुकम्पा करे. श्रीभगवती. प्रमुखसूत्रोंमें श्रावकके वर्णनके प्रसंगमें “ अवंगुअदुःआरा" यह विशेषण देकर " श्रावकने साधुआदि लोगोंके प्रवेश करने के लिये हमेशा द्वार खुला रखना" ऐसा कहा है तीर्थंकरोंने भी सांवत्सरिक दान देकर दीनलोगोंका उद्धार किया. विक्रमराजाने भी अपने राज्यके सर्वलोगोंको ऋण रहित किया, जिससे उसके नामका संवत् चला. दुष्कालआदि आपत्तिके समय लोगोंको सहायता देनेसे महान् फल प्राप्त होता है. कहा है कि-शिष्यकी विनयसे, योद्धाकी समरभूमिमें, मित्रकी संकटके समय और दानकी दुर्भिक्ष पडनेसे परीक्षा होती है. संवत् १३१५ में दुर्भिक्ष पडा था, तब भद्रेश्वरनगरनिवासी श्रीमालजातिके जगडुशाहने एक सौ बारह सदावर्त स्थापित कर दान दिया था. कहा है कि--दुर्भिक्षके समय हम्मीरने बारह, वीसलदेवने आठ, बादशाहने एकवीस और जगडुशाहने एक हजार धान्यके मूडे ( माप विशेष ) दिये. उसी प्रकार अणहिल्लपुरपाटणमें “ सिंधाक " नाम एक बडा सराफ हुआ था. उसने अश्व, गज, बडे २ महल आदि अपार ऋद्धि उपार्जन करी थी. संवत् १४२९ में उसने आठ मंदिर बंधाये और महायात्राएं करी. एक समय उसने ज्योतिषीके कहने परसे भविष्यमें आनेवाले दुर्भिक्षका हाल सुना और दो लाख मन धान्य संग्रह करके रखा जिससे दुर्भिक्ष पड़ने पर भावकी तेजीसे उसे बहुत लाभ
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy