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________________ ( ५८४ ) एक समय चक्रेश्वरीकी आज्ञा से चंद्रचूडदेवताने कनकध्वज राजाको वरवधूकी बधाई दी. वह पुत्रियों को देखनेकी दीर्घकालकी उत्कंठा से तथा पुत्रियोंकी प्रीतिनें शीघ्र प्रेरणा करनेसे सेना के साथ रवाना हुआ व कुछ दिनके बाद वह अंतःपुर, मांडलिक राजागण, मंत्री, श्रेष्ठी आदि परिवार सहित वहां आ पहुंचा. श्रेष्ठशिष्य जैसे गुरुको नमस्कार करते हैं, वैसे कुमार, तोता, कन्याओंआदिने शीघ्र सन्मुख आ राजाको प्रणाम किया. बहुत कालसे माताको मिलनेकी उत्सुक दोनों राजकन्याएं, बछडियां जैसे अपनी माताको प्रेमसे आ मिलती हैं, ऐसे अनुपम प्रेमसे आ मिलीं. जगत् श्रेष्ठ रत्नसारकुमार तथा उस दिव्यऋद्धिको देखकर राजादिने वह दिन बडा अमूल्य माना. पश्चात् कुमारने देवीके प्रसादसे सबकी भलीभांति मेहमानी की. जिससे यद्यपि राजा कनकध्वज अपनी नगरीको वापस जानेको उत्सुक था. तो भी वह पूर्व उत्सुकता जाती रही. ठीक ही है, दिव्यऋद्धि देखकर किसका मन स्थिर नहीं होता ? राजा व उसके संपूर्ण साथियोंको कुमारकी की हुई भांति भांतिकी मेहमानी से ऐसा प्रतीत हुआ मानों अपने दिन सुकार्यमें व्यतीत हो रहे हैं. एकसमय राजानें कुमारको प्रार्थना करी कि, " हे सत्पुरुष ! जैसे तूने मेरी इन दो कन्याओंको कृतार्थ कर दी, वैसे ही पदार्पण कर मेरी नगरीको भी पवित्र कर. तदनुसार कुमारके 19
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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