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________________ (५६३) तंतु मंगाकर देकर संतुष्ट करी कुमारआदिके मनमें यह संशय आही रहा था कि, "यह कौन है ? कहांसे आई ? किससे भयातुर हुइ? और मनुष्यवाणीसे किस प्रकार बोलती है ?" इतने ही म शत्रुओंके करोडों सुभटोंके निम्नोक्त भयंकर वचन उनके कानमें पडे. "त्रैलोक्यका अंत करने वाले यमको कौन कुपित कर सकता है ? अपने जीवनकी परवाह न करते शेषनागके मस्तक पर स्थित मणिको कौन स्पर्श कर सकता है ? तथा कौन बिना विचार प्रलयकालकी अग्निज्वालाओंमें प्रवेश कर सकता है?" . इत्यादि. ऐसे वचन सुनते ही तोतेके मनमें शंका उत्पन्न हुई, और वह मंदिरके द्वारमें आकर देखने लगा, उसने गंगाके तीत्र. प्रवाहकी भांति, आकाशमार्गमें आती हुई विद्याधरराजाकी महान् शूरवीर सेना उसके देखनेमें आई. तीर्थके प्रभावसे, कुछ दैविकप्रभावसे, भाग्यशाली रत्नसारके आश्चर्यकारी भाग्यसे अथवा उसके परिचयसे, कौन जाने किस कारणसे तोता शूरवीरपुरुषोंका व्रत पालने में अग्रसर हुआ. उसने गंभीर और उच्चस्वरसे ललकार कर शत्रुकी सेनाको कहाकि, "अरे विद्याधरसुभटों ! दुष्टबुद्धिसे कहां दौडते हो ? क्या नहीं देखते कि देवताओंसे भी न जिता जा सके ऐसा कुमार सन्मुख बैठा हुआ है ? सुवर्णसदृश तेजस्वी कायाको धारण करनेवाला यह कुमार, जैसे गरुड चारों ओर दौडनेवाला साँका मद उतारता है वैसे ही तुम्हारा मदोन्मत्तकी भांति अहंकार क्षण
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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