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________________ ( ३४ ) प्रभुके उक्त प्रसादसे मुझे इतना आनन्द हुआ कि मानों चारों ओरसे ऐश्वर्यकी प्राप्ति हुई हो, उसी समय मेरी निद्रा खुल गई। हे स्वामी ! एकाएक प्राप्त हुए इस स्वनवृक्षके हमको कैसे फल मिलेंगे, सो कहिये ? " परमानन्दरूप कंदको नव पल्लव ( हरा भरा ) करने के लिये मेघवृष्टि सदृश कमलमाला के वचन सुनकर स्वप्नफलका ज्ञाता राजा मृगध्वज बोला कि, "हे प्रिये ! देवताओंके दर्शन के समान ऐसे दिव्य स्वप्न के दर्शन भी बडे दुर्लभ हैं । बिरला ही भाग्यशाली जीव ऐसे स्वप्नोंका दर्शन करता है तथा तदनुसार फल पाता है । सुन्दरी ! जिस भांति पूर्व दिशाको सूर्य चन्द्रके समान दो प्रतापी पुत्र होते हैं उसी भांति तेरे भी अनुक्रमसे दो तेजस्वी पुत्र होवेंगे | पक्षी कुलमें श्रेष्ठ तोते और हंसकी भांति वे दोनों ही अपने राज्यमें प्रतिष्ठित होवेंगे । हे प्रिये ! इसमें जरा भी संशय नहीं कि भगवानने प्रसादरूप जो तुझे दो पुत्र दिये हैं वे दोनों अन्तमें मुक्त होकर भगवान ही के सदृश पूजनीय होवेंगे - " यह वचन सुनकर रानी पुलकित होगड़ और रानी कमलमालाने, पृथ्वी अमूल्य रत्नको अथवा आकाश सूर्यको धारण करता है उसी भांति गर्भ धारण किया । मेरुपर्वतकी भूमि में दिव्य-रसोंसे जिस प्रकार से कल्पवृक्षका कंद पुष्ट होता है उसी प्रकार राजाके धर्मानुसार समय व्यतीत करनेसे गर्भ वृद्धिको प्राप्त हुआ तथा
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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