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________________ ( ५३४ ) जैसे अन्य समस्तजीवों को पीछे छोड़ देता है, उसी प्रकार जब कुमारने उसे आस्कंदित नामक पांचवी गतिको पहुंचाया, तो उसने अन्य सर्वअश्वों को पीछे छोड दिया । इतनी ही देर में श्रेष्ठीके घरमें जो एक पाला हुआ तोता था उसने उस कार्यका तच विचार कर श्रेष्ठी वसुसारको कहा कि" हे तात ! मेरा भाई रत्नसार कुमार इसी समय अश्वरत्नपर आरूढ होकर बडेवेगसे जा रहा है, कुमार कौतुक - रसिक व चपल प्रकृति है; अश्व भी हरिण के समान बडा ही चालाक व उछल उछल कर चलनेवाला है, और दैवकी गति बिजली की दमकसे भी अत्यन्त विचित्र हैं, इसलिये हम नहीं जान सकते कि इस कृत्य का क्या परिणाम होगा ? सौभाग्यनिधि मेरे भाईका अशुभ तो कहीं भी नहीं हो सकता, तथापि स्नेही मनुष्यों के मनमें अपनी जिस पर प्रीति होती है, उसके विषय में अशुभ कल्पनाएं हुए बिना नहीं रहती । सिंह जहां जाता है वहीं अपनी प्रभुता चलाता हैं, तथापि उसकी माता सिंहनीका मन अपने पुत्र के सम्बन्ध में अशुभ कल्पना करके अवश्य दुःखी होता है । ऐसी अवस्था में भी शक्त्यनुसार यत्न रखना यही ' पानी पहिले पाल बांधना ' यह युक्तिसे अच्छा जान पडता है । इसलिये हे तात ! हे स्वामिन् ! यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं अतिशीघ्र कुमारकी शोधके लिये जाऊं । दैव न करे, और कदाचित् कुमारपर कोई आपत्ति आ पडे, तो मैं हर्षोत्पा
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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