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________________ (५०३) सम्वत्थ उविअकरणं, गुणाणुराओ रई अ जिणवयणे । अगुणेसु अ मज्झत्थं, सम्मदिहिस्स लिंगाई ॥१॥' सब जगह उचितआचरण करना, गुणके ऊपर अनुराग रखना, दोषमें मध्यस्थपन रखना तथा जिनवचनमें रुचि रखना, ये सम्यग्दृष्टिके लक्षण हैं. समुद्र अपनी मर्यादा नहीं छोडते, पर्वत चलायमान नहीं होते, उसी भांति उत्तमपुरुष किसी समय भी उचितआचरण नहीं छोडते. इसीलिये जगद्गुरु तीर्थंकर भी गृहस्थावस्थामें मातापिताके सम्बन्धमें अभ्युत्थान ( बडे पुरुषों के आने पर आदरसे खडा रहना ) आदि करते हैं। इत्यादि नौप्रकारका उचितआचरण है । (४४) अवसर पर कहे हुए उचितवचनसे बहुत गुण होता है। जैसे आंबडमंत्रीने मल्लिकार्जुनको जीतकर चौदह करोड मूल्य के मोतियों से भरे हुए छः मूडे (मापका पात्रविशेष ), चौदह चौदह भार वजन धनसे भरे हुए बत्तीस कुंभ, शृंगारके एक करोड रत्न जडित वस्त्र तथा विषनाशक शुक्ति(सीप) आदि वस्तुएं कुमारपालके भंडारमें भरीं । जिससे उस कुमारपालने प्रसन्न हो आंबड मंत्रीको " राजपितामह " पदवी, एक करोड द्रव्य, चौबीस उत्तम अश्व इत्यादि ऋद्धि प्रदान की । तब मंत्रीने अपने घर तक पहुंचनेके पहिले ही मार्गमें याचकजनोंको वह सम्पूर्ण ऋद्धि बांटदी। इस बातकी किसीने जाकर राजाके पास
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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