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उन्हें एकान्तमें कहना कि, " महाराज ! आपके समान चारित्रवन्तको क्या यह वात उचित है ?" ३२)
कुणइ विणओवयारं, भत्तीए समयसमुचि सव्वं ।। . गाढं गुणाणुरायं, निम्माय वहइ हिअयंमि ॥ ३३ ॥
अर्थः-शिष्यने सन्मुख आना, गुरुके आने पर उठना, आसन देना, पगचंपी करना, तथा शुद्ध वस्त्रपात्रआहारादिका दानआदि समयोचित समस्त विनय सम्बन्धी उपचार भक्तिपूर्वक करना और अपने हृदयमें धर्माचार्य पर दृढ तथा कपट रहित अनुराग धारण करना. ३३ ... भावोवयारमेसि, देसंतरिओवि सुमरइ सयापि ॥
इअ एवमाइगुरुजणसमुचिअमुचिरं मुणेयव्वं ॥३४॥
अर्थः--पुरुष विदेशमें होवे तो भी धर्माचार्य के किये हुए सम्यक्त्वदानआदि उपकारको निरन्तर स्मरण करे. इत्यादि धमोचायके सम्बन्धमें उचितआचरण है. ॥३॥
जत्थ सयं निवसिज्जइ, नयरे तत्थेव जे किर वसति ॥ .. ससमाणवत्तिणो ते, नायरया नाम वुञ्चति ॥ ३५ ॥
अर्थ:--पुरुष जिस नगरमें रहता हो, उसी नगरमें वणिग्वृत्तिसे आजीविका करनेवाले जो अन्य लोग रहते हैं. वे नागर कहलाते हैं. ॥३५॥
समुचिअमिणमेतेति, जमेगचित्तेहिं समसुदुहेहिं ॥ ..... बसणूसवतुल्लगमागमेहिं नियपि होअर्व ॥३६॥ ...