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________________ ( ४८३ ) मस्तक मांगो ताकि तुम दो वस्त्र एकही साथ बनालोगे । " तदनन्तर कोलीने स्त्रीके कथनानुसार वर मांगा व व्यंतरने दे दिया, परन्तु लोगोंने ऐसे विलक्षण स्वरूपसे उस कोलीको ग्राम में प्रवेश करते देख राक्षस समझकर लकडी पत्थर आदि - से मार डाला । कहा है कि जिसे स्वयं बुद्धि नहीं तथा जो मित्रकी सलाह भी नहीं मानता तथा स्त्रीके वशमें रहता है, वह मंथरकोलीकी भांति नष्ट होजाता है । ऐसी बातें क्वचित् ही देखनेमें आती हैं इसलिये सुशिक्षित और बुद्धिशाली स्त्री होवे तो उसकी सलाह मसलत लेने से लाभ ही होता है । इस विषय में अनुपमदेवी और वस्तुपालतेजपालका उत्कृष्ट उदाहरण है । ( १६ ) सुकुलुग्गयाहिं परिणयवयाहिं निच्छम्मधम्मनिरया हैं ॥ सयणरमणीहिं पीई, पाउणइ समाणधम्माहिं ॥ १७ ॥ अर्थ :- श्रेष्ठ कुलमें उत्पन्न हुई, प्रौढावस्थावाली, कपट रहित, धर्मरत, साधम्मिक और अपने सगे सम्बन्धकी स्त्रियोंके साथ अपनी स्त्री की प्रीति कराना चाहिये । श्रेष्ठकुलोत्पन्न स्त्रीके साथ संगति करनेका कारण यह है कि, नीचकुलमें उत्पन्न हुई स्त्रीके साथ रहना यह कुल - स्त्रियोंको अपवादकी जड । ( १७ ) | रोगाइ नोविक्खइ, सुसहाओ होइ धम्मक एमाइ पणइणिगयं, उचिअं पाएण पुरिसस्स ॥ १८ ॥
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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