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कदाचित कोई गुप्त बात उसके मुखसे प्रकट होनेसे राज्यद्रोह - का विवाद भी खड़ा हो जावे, इसीलिये घरमें स्त्रीका मुख्य चलन नहीं रखना चाहिये । कहा है कि - "स्त्री पुंवच प्रभवति यदा तद्धि गेहं विनष्टम् " ( स्त्री पुरुषके समान प्रबल होजावे तो वह घर धूलमें मिल गया ऐसा समझो. ) इस विषय पर एक दृष्टान्त कहते हैं, कि:--
किसी नगर में मंथर नामक एक कोली था । वह बुननेकी लकडी आदि बनानेके लिये जंगलमें लकडी लेने गया | वहां एक शीसमके वृक्षको काटते हुए उसके अधिष्ठायक व्यंतरने मना किया, तो भी वह साहसपूर्वक तोडने लगा, तब व्यंतरने उसको कहा - " वर मांग " कोली स्त्रीलंपट होने के कारण स्त्रीको पूछने गया । मार्ग में उसका एक नाई मित्र मिला. उसने सलाह दी कि " तू राज्य न मांग । " तो भी उसने स्त्रीको पूछा । स्त्री तुच्छ स्वभावकी थी इससे एक बचन उसे स्मरण हुआ कि
प्रवर्धमानः पुरुषस्त्रयाणामुपघात्कृन् । पूर्वोपार्जित मित्राणां, दाराणामथ वेश्मनाम् ||१|| अर्थ :- पुरुष लक्ष्मीके लाभसे विशेष वृद्धिको प्राप्त हो जावे तो अपने पुराने मित्र, स्त्री और घर इन तीन वस्तुओंको छोड देता है । यह विचार कर उसने पति से कहा कि, अत्यन्त दुखदायी राज्य लेकर क्या करना है ? दूसरे दो हाथ और एक