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________________ (४६७) . करना है. ज्ञानी मातापिताओंकी योग्य सेवा करनेसे वे प्रत्येक कार्यके रहस्य (गुप्त भेद) अवश्य प्रकट करते हैं.कहा है कि तत्तदुत्प्रेक्षमाणानां, पुराणैरागमैर्विना । अनुपासितवृद्धानां, प्रज्ञा नातिप्रसीदति ॥१॥ यदेकः स्थविरो वेत्ति, न तत्तरुणकोटयः। यो नृपं लत्तया हन्ति, वृद्धवाक्यात्त पूज्यते ॥ २ ॥ ज्ञानवृद्धलोगोंकी सेवा न करनेवाले और पुराण तथा आगम विना अपनी बुद्धिसे पृथक् २ कल्पना करनेवाले लोगोंकी बुद्धि विशेष प्रसन्न नहीं होती. एक स्थविर (वृद्ध) जितना ज्ञान रखता है उतना करोडों तरुणलोग भी नहीं रख सकते. देखो, राजाको लात मारनेवाला पुरुष वृद्धके वचनसे पूजा जाता है. वृद्धपुरुषोंका वचन सुनना तथा समय पड़ने पर बहुश्रुतोंसे पूछना. देखो, वनमे हंसोंका समूह बन्धनमें पडा था वह वृद्धवचन ही से मुक्त हुआ. इसी प्रकार अपने मनका अभिप्रायः पिताजीके सन्मुख अवश्य प्रकट कर देना चाहिये. (४) __ आपुच्छिउँ पयट्टइ, करणिज्जेसु निसेहिओ ठाइ ।। खलिए खरंपि भणिओ, विणीअयं न हु विलंघेइ ॥५॥ अर्थ:-पिताजीको पूछ कर ही प्रत्येककायम लगना, यदि पिताजी कोई कार्य करनेकी मनाई कर दें तो न करना, कोई अपराध होने पर पिताजी कठोर शब्द कहे, तो भी अपना विनीतपन न छोड़े, अर्थात् मर्यादा छोड़कर चाहे जैसा प्रत्युत्तर न दें.
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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