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________________ (४४३) इन दोनोंको बाधा होवे तथापि सर्वप्रकारसे धर्मकी रक्षा करना चाहिये. कारण कि अर्थ व कामका मूल धर्म है. कहा है किचाहे नरेटीमें भिक्षा मांगकर अपनी आजीविका चलाता हो, तो भी मनुष्य जो अपने धर्मको बाधा न उपजावे तो उसे ऐसा समझना चाहिये कि, " मैं बडा धनवान हूं." कारण कि, धर्मही सत्पुरुषोंका धन है. जो मनुष्य मनुष्यभव पाकर धर्म, अर्थ, काम इन तीनका साधन न करे उसकी आयुष्य पशुकी आयुष्यकी भांति वृथा है. इन तीनोंमें भी धर्म श्रेष्ठ है. कारण कि, उसके बिना अर्थ और काम उत्पन्न नहीं होते. द्रव्यकी प्राप्तिके प्रमाणमें उचित व्यय करना चाहिये. नीतिशास्त्रमें कहा है कि, जितनी द्रव्यकी प्राप्ति हो, उसका एक चतुर्थभाग संचय करना, दुसरा चतुर्थभाग व्यापारमें अथवा ब्याज पर लगाना, तीसरा चतुर्थभाग धर्मकृत्यमें तथा अपने उपभोगमें लगाना; और चौथा चतुर्थभाग कुटुम्बके पोषण निमित्त व्यय करना. कोई २ ऐसा कहते हैं कि- प्राप्तिका आधा अथवा उससे भी अधिक भाग धर्मकृत्यमें लगाना और बाकी रहे हुए द्रव्यमें शेष सर्व कार्य करना. कारण कि, एक धर्मके सिवाय इसलोकके शेष सर्वकार्य तुच्छ हैं. कोई कोई लोग कहते हैं कि- उपरोक्त दोनों वचनोंमें प्रथम गरीबके तथा दुसरा धनवानके उद्देश्यसे कहा है. जीवन और लक्ष्मी किसको वल्लभ नहीं किन्तु अवसर पर सत्पुरुष इन दोनोंको तृणसे भी हलका समझते हैं.
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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