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________________ ( ४२८ ) ध्यान में रखकर अपने ग्रामको गया. कुछ दिनोंके बाद एक दिन वेही चोर उसी नामके कुछ चोरोंको साथ लेकर ग्राम में आये. उस वणिकने चोरोंको पहिचान कर अपना द्रव्य मांगा; कलह हुआ, अन्तमें यह बात राजद्वार तक पहुंची. न्यायाधीशोंने वणिकसे पूछा - " द्रव्य दिया उस समय कोई साक्षी था ?" वणिकने पींजरे में रखे हुए एक काले बिलाडको बताकर कहा" यह मेरा साक्षी है. " चोरोंने कहा--" बता तेरा कौनसा साक्षी है ? " वाकके बताने पर चोरोंने कहा--" वह यह नहीं है. वह तो काबर चित्र वर्णका था, और यह तो काला है." इस प्रकार अपने मुख ही से चोरोंने स्वीकार कर लिया. तब न्यायाधीशोंने उनके पाससे वणिकको द्रव्य दिलाया इत्यादि. इसलिये धरोहर रखना अथवा लेना हो तो गुप्त नहीं रखना, स्वजनोंको साक्षी रखकर ही रखना या लेना चाहिये. मालिककी सम्मतिके बिना उसे इधर उधर भी न करना चाहिये । कदाचित् धरोहर रखनेवाला मनुष्य मर जावे तो उक्त धरोहर उसके पुत्रोंको दे देना चाहिये. यदि उसके पुत्रआदि न होवें तो सर्वसंघके समक्ष उसे धर्मकार्य में वापरना चाहिये. उधार थापणआदिकी नोंध उसी समय करनेमें लेश मात्र भी प्रमाद न रखना चाहिये. कहा है कि -- प्रन्थिबंधे परीक्षायां गणने गोपने व्यये । लेख्य के च कृतालस्यो, नरः शीघ्रं विनश्यति ॥ १ ॥
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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