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द्रव्य आदि के विषय में पूछा श्रेष्ठीने कहा--" परदेशमें उपार्जन किया हुआ बहुतसा द्रव्य है, तथापि वह इधर उधर फैला हुआ होने से मेरे पुत्रों से लिया नहीं जा सकेगा. किन्तु मेरे एक मित्र के पास मैंने आठ रत्न धरोहर रखे हैं, वे मेरे स्त्रीपुत्रादिकोंको दिला देना. " यह कह वह मर गया. स्वजनोंने आकर उसके पुत्रादिकों को यह बात कही, तब उन्होंने अपने पिताके मित्रको विनयसे, प्रेमसे और अत्यादरसे घर बुलाया और अभयदानादि अनेक प्रकारकी युक्तिसे रत्नों की मांगणी की; परन्तु उस लोभी मित्रने एक भी बात न मानी तथा रत्न भी नहीं दिये. अन्त में यह विवाद न्यायसभा में गया, किन्तु साक्षी, लेख आदि प्रमाण न होनेसे कुछ भी फल न हुआ. यह साक्षी रखकर द्रव्य देनेके विषय में धनेश्वर श्रेष्ठीका दृष्ट है । इसलिये किसीको भी साक्षी रखकर द्रव्य देना चाहिये. साक्षी रखा हो तो चोरको दिया हुआ द्रव्य भी पीछा आता है. जैसे:--
एक वणिक धनवान तथा बहुत धूर्त था. मार्ग में जाते उसे चोर मिले. चोरोंने जुहार करके उससे द्रव्य मांगा. वणिकने कहा--" साक्षी रखकर यह सर्व द्रव्य तुम ले लो और समय पाकर पीछा देना, परन्तु मुझे मारो मत. " चोरोंने इसे मूर्ख समझ एक कारचित्र जंगली बिलाडको साक्षी रख सर्व द्रव्य लेकर वणिकको छोड दिया. वह वणिक उस स्थानको बराबर