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________________ (३८७) कहते हैं ५ और सेवा की आजीविका श्ववृत्ति कही जाती है, इससे उसको छोडदेनी चाहिए । इन सबमें वणिकलोगोंको मुख्यतः तो द्रव्यसंपादनका साधन व्यापार ही है. कहा है कि-- महुमहणस्स य वच्छे न चेव कमलायरे सिरी वसइ । किंतु पुरिसाण ववसायसायरे ताइ सुहठाणं ॥ १ ॥" लक्ष्मी विष्णुके वक्षस्थल अथवा कमलबनमें नहीं रहती परन्तु पुरुषोंका उद्यमरूप समुद्र ही उसका निवासस्थान है. विवेकी--पुरुषने अपना तथा अपने सहायक धन, बल, भाग्योदय, देश, काल आदिका विचारकरके ही व्यापार करना चाहिये, अन्यथा हानिआदि होनेकी संभावना रहती है । हमने कहा है कि--बुद्धिमान पुरुषोंने अपनी शक्ति ही के अनुसार कार्य करना. वैसा न करनेसे कार्यकी असिद्धि, लज्जा, लोकमें उपहास, अवहेलना, और लक्ष्मी तथा बलकी हानि होती है. अन्यग्रन्थकारोंने भी कहा है कि-देश कैसा है ? मेरे सहायक कैसे हैं ? काल कैसा है ? मेरा आयव्यय कितना है ? मैं कौन हूं? तथा मेरी शाक्त कितनी है ? इन बातोंका नित्य बारंबार विचार करना चाहिये । शीघ्र हाथ आने वाले, निर्विघ्न, अपनी सिद्धिके निमित्त बहुतसे साधन रखनेवाले कारण प्रथम ही से शीघ्र कार्यसिद्धिकी सूचना करते हैं. यत्नके बिना प्राप्त होनेवाली और बहुत यत्नसे भी प्राप्त न होनेवाली लक्ष्मी पुण्यपापका भेद बताती
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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