________________
(३७२) अन्य किसी ऐसे ही प्रसंग पर वैद्य व गांधीको विशेष लाभ होता है, स्थान २ पर आदर होता है। कहा है कि
शरीरमें दुःख होता है तब वैद्य पिताके समान है। तथा रोगाके मित्र वैद्य, राजाके मित्र हांजी २ करके मीठे वचन बोलने वाले, संसारी दुःखसे पीडित मनुष्यके मित्र मुनिराज और लक्ष्मी खोकर बैठे हुए पुरुषों के मित्र ज्योतिषी होते हैं।
सर्व व्यापारोंमें गांधी ही का व्यापार सरस है। कारण कि, उस व्यापारमें एकटकमें खरीदी हुई वस्तु सौटकेमें विकती है । यह सत्य बात है कि वैद्य तथा गांधीको लाभ व मान बहुत मिलता है; परंतु यह नियम है कि, जिसको जिस कारणसे लाभ होता है, वह मनुष्य वैसाही कारण नित्य बन आनेकी इच्छा रखता है । कहा है कि- योद्धा रणसंग्रामकी, वैद्य बडे बडे धनवान लोगोंके बीमार होनेकी, ब्राह्मण अधिक मृत्युओंकी तथा निर्गथ मुनिजन लोकमें सुभिक्ष तथा क्षेमकुशलकी इच्छा करते हैं । मनमें धन उपार्जन करनेकी इच्छा रखनेवाले जो वैद्य लोगोके बीमार होनेकी इच्छा करते हैं, रोगी मनुष्य के रोगको औषधिसे अच्छा होते रोककर द्रव्य लोभसे उलटी उसकी वृद्धि करते हैं, ऐसे वैद्यके मनमें दया कहांसे हो सकती है ? कितनेही वैद्य तो अपने साधर्मि, दरिद्री, अनाथ, मृत्युशय्यापर पडे हुए लोगोंसे भी बलात्कार द्रव्य लेने की इच्छा करते हैं। अभक्ष्यवस्तु भी औषधिमें डालकर रोगीको खिलाते और द्वारिकाके