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________________ (१६) समान समझता है । झोपडीको विमान समझता है। अपने खानेके अन्नादिको अमृत समझता है। पहरने ओढने के कपडोंको दिव्यवस्त्र समझता है। अपने आपको इन्द्र व अपने सर्व परिवारको देवताओंके समान गिनता है।" यह सुन राजा विचार करने लगा कि "इस महापंडितने मुझे गंवार समझा, इससे मालूम होता है कि मेरी स्त्रियोंसे भी अधिक सुन्दर कोई दूसरी स्त्री अन्यत्र कहीं है।" तोता पुनः बोला- “ठीक ही है, अधूरी बात कहनेसे मनुष्यको आनन्द नहीं होता । हे राजन् ! जबतक तूं गांगलि. ऋषीकी पुत्रीको नहीं देखेगा तभीतक तूं अपने अन्तःपुरकी स्त्रियोंको मनोहर समझेगा। वह त्रिलोकमें ऐसी सुन्दर व सर्व अवयवोंसे परिपूर्ण है कि विधाताने मानो उसे बनाकर सृष्टिरचनाका बदला प्राप्त किया है। जिसने उस कन्याको नहीं देखा उसका जीवन निष्फल है। और जिसने कभी देखा हो पर आलिंगन न किया उसका भी जीवन अकारथ है । क्या कोई उसे देख कर कभी अन्य स्त्रीसे प्रीति कर सकता है ? भ्रमर मालतीके पुप्पको त्याग कर क्या अन्य पुष्प पर आसक्त हो सकता है ? नहीं, कदापि नहीं । जो सूर्यकी पुत्री कमलमाला (कमलकी पंक्ति)के सदृश उस कमलमाला कन्याको देखनेकी अथवा उससे विवाह करनेकी इच्छा हो तो शीघ्र मेरे साथ चल !"
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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