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सत्यसा मालूम होता है । परन्तु यह तोता तो बे मतलब स्वसाव ही से यह वाक्य बोला होगा।
राजा इस प्रकार विचार कर ही रहा था कि तोता पुनः एक अन्योक्ति बोला- " ( इस वाक्यमें मेंडक व हंसका परस्पर संवाद है)
मेंडक- हे पक्षी ! तूं कहांसे आया है ? हंस-- मैं अपने सरोवर से आया हूं। मेंडक- वह सरोवर कितना बड़ा है ? हंस-- बहुत ही बडा है। मेंडक-- क्या मेरे घरसे भी सरोवर बड़ा है ? हंस-- हां, बहुत ही। .
यह सुनकर मेंडक हंसको गाली देने लगा कि "हे पापी! तूं मेरे सन्मुख क्यों असत्य बोलता है ? धिक्कार है तुझे ! इस पर हंसको यही समझ लेना उचित है कि “क्षुद्रबुद्धि मनुष्य जरासी भी कोई वस्तु पाता है तो भी वह बहुत अहंकार करता है.
यह अन्योक्ति सुनकर राजाने विचार किया कि "इन तोतेने मुझे निश्चय कूप-मंडुक ( कुएके अन्दर रहनेवाला मेंडक) बनाया है। आश्चर्य है कि यह उत्तम पक्षी भी मुनिराजकी भांति ज्ञानी है ।” राजा यह विचार का ही रहा था कि तोता पुनः बोला । "मूोंके सरदार सदृश गंवारकी कैसी मूर्खता है ? कि जो अपने गांव ( खेडा-देहात ) को स्वर्गपुरीके