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________________ (३६४) कोई स्त्री दीक्षा लेनेको तैयार होवे, तो उसे उन्हींको (साध्धियोंको) सौंपना, जो साध्वियां अपना कोई आचार भूल जायें, तो उनको स्मरण कराना, जो साध्वियां अन्यायमार्गमें जावें तो उनको रोकना, जिनका पग असन्मार्गमें पडगया हो, तो प्रथम उन्हें सदुपदेश देना, यदि वे शिक्षा न मानकर बारम्बार कुमागमें जावें, तो उनको कठोर वचन कहना तथा अन्य उपाय न होवे तो डंडादिसे शिक्षा करना. वैसे ही उचित वस्तु देकर उनकी सेवा करना चाहिये. इत्यादि. __सुश्रावकने साधुमुनिराजके पास जाकर कुछ तो भी पढना चाहिये. कहा है कि - " अञ्जनस्य क्षयं दृष्ट्वा वल्मीकस्य वि (च) वर्द्धनम् । अवन्ध्य दिवसं कुर्याहानाध्ययनकर्मसु ॥१॥ सन्तोषस्त्रिषु कर्त्तव्यः, स्वदारे भाजने धने । त्रिषु चैव न कर्त्तव्यो, दाने चाध्ययने तपे ॥ २॥ गृहीत इव केशेषु, मृत्युना धर्ममाचरेत् । अजरामरवत्प्राज्ञो, विद्यामर्थञ्च चिन्तयेत् ॥ ३ ॥ अह जह सुयमवगाहइ, अइसयरसपसरसंजुअमपुर । तह तह पल्हाइ मुणी, नवनवसंवेगसद्धाए ॥ ४ ॥ जो इह पढ{ अपुवं, स लहइ तित्थंकरतमन्नभवे । जो पुण पाढेइ परं, सम्मसुअं तस्स किं भणिमो? ॥ ५ ॥
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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