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________________ (३२८.) उसने बहुत काल तक सहन करी. एक दिन नये बने हुए जिनमंदिरका कोट बांधा जा रहा था, उसके लिये पानी लाते जिनमंदिर तथा जिनप्रतिमा आदि देख उसको जातिस्मरणज्ञान उत्पन्न हुआ. जिससे वह वहीं स्थिर होकर खडा होगया. भिश्तीने बहुत प्रयत्न किया किन्तु उसने वहांसे एक कदम भी न बढाया. पश्चात् ज्ञानी गुरुके वचनसे उसके पूर्वभवके पुत्रोंने भिश्तीको द्रव्य दे उसे छुडाया और उसने पूर्वभवमें जितना देवद्रव्य देना स्वीकार किया था उससे सहस्रगुणा द्रव्य दे अपने पूर्वभवके पिताको ऋणसे मुक्त किया. तदनंतर वह पाडा अनशन करके स्वगेको गया इत्यादि. इसलिये माना हुआ देवद्रव्य क्षणमात्र भी घरमें न रखना. विवेकीपुरुष अन्य किसीका देना हो तो भी व्यवहार रखने के लिये देने में विलम्ब नहीं करते, तो फिर देवादिद्रव्य देनेके लिये विलम्ब कैसे किया जासकता है ? इसी कारण से देव, ज्ञान, साधारण आदि खातेमें माल, पहरावणीआदिका जितना द्रव्य देना स्वीकार किया हो, उतना द्रव्य उस खातेका हो चुका. अतः वह किस प्रकार भोगा जाय ? अथवा उस रकमसे उत्पन्न हुआ व्याजआदि लाभ भी कैसे लिया जाय ? कारण कि, वैसा करनेसे उपरोक्त कथनानुसार देवादि द्रव्योपभोगका दोष लगता है. अतएव देवादिकका द्रव्य तत्काल दे देना. जिससे तत्काल न दिया जा सके उसने प्रथम ही से सप्ताह अथवा
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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