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________________ (३२७) भी देवद्रव्य, ज्ञानद्रव्य व साधारणद्रव्यका उपभोग किसी प्रकार भी न करना चाहिये. और इसी हेतुसे माल पहिराना, पहरामणी, न्युंछन इत्यादिकका स्वीकृत किया हुआ द्रव्य उसी समय दे देना चाहिये. कदाचित ऐसा न होसके तो जितना शीघ्र दिया जाय उतना ही गुणकारी है. विलम्ब करनेसे कभी२ दुर्दैवसे सर्वद्रव्यकी हानि अथवा मृत्युआदि होजाना संभव है, और ऐसा होवे तो सुश्रावकको भी अवश्य नरकादि दुर्गतिको जाना पडता है। इस विषयमें ऐसी बात सुनते हैं कि-- महापुर नामक नगरमें अरिहंतका भक्त ऋषभदत्त नामक रडा श्रेष्ठी रहता था. वह किसी पर्व पर मंदिरको गया साथमें द्रव्य न होनेसे उधार खाते पहिरावणीका द्रव्य देना स्वीकार किया. बहुतसे कार्यों में लग जानेसे वह उक्त द्रव्य शीघ्र न दे सका. एक समय दुर्दैववश उसके घर पर डाका पडा. शस्त्रधारी चोरोंने उसका समस्त द्रव्य लुट लिया, और · भविष्यमें श्रेष्ठी अपनेको राजदंड दिलावेगा." ऐसा मनमें भय होनेसे उन्होंने ऋषभदत्त श्रेष्ठीको भी मार डाला. ऋषभदत्तका जीव उसी महापुर नगरमें एक निर्दय, दरिद्री और कृपण भिश्तीके घर पाडा ( भैंसा ) के रूपमें उत्पन्न हुआ. और नित्य घर घर जलादिक भार उठा कर लेजाने लगा. वह नगर ऊंचा था, व नदी बहुत गहरी थी. जिससे ऊंची भूमि चढना, रातदिन बोझा उठाना, धूप भूख तथा पीठपर पडती मार सहना इत्यादि महावेदनाएं
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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