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________________ (३२५) बारह द्रम्म द्रव्य वापरा था इससे तुम दोनोंको बारह हजार भवमें बहुत दुख भोगना पड़ा. इस भवमें भी बारह २ करोड स्वर्णमुद्राएं चली गई, बारह वक्त बहुतसा उद्यम किया, तो भी एकको तो बिलकुल ही द्रव्यलाभ न हुआ, और दूसरेको द्रव्य मिला था, वह भी चला गया, वैसे ही दूसरेके घर दासता तथा बहुत दुःख भोगना पडा. कर्मसारको तो पूर्वभवमें ज्ञानद्रव्य वापरनेसे बुद्धिकी अतिमंदता आदि निकृष्ट फल मिला. मुनिराजका ऐसा बचन सुन कर दोनोंने श्रावक-धर्म अंगीकार किया, और ज्ञानद्रव्य तथा साधारणद्रव्य लेनेके प्रायश्चितरूप कर्मसारने बारह हजार द्रम्म ज्ञानखाते तथा पुण्यसारने बारह हजार द्रम्म साधारणखाते ज्यों २ उत्पन्न होते जायँ त्यों त्यों जमा करना ऐसा नियम लिया । पश्चात् पूर्वभवके पापका क्षय होनेसे उन दोनों को बहुत द्रव्य लाभ हुआ. उन्होंने स्वीकृत किये अनुसार ज्ञानद्रव्य तथा साधारणद्रव्य दे दिया. उसके उपरान्त उन दोनों भाइयों के पास बारह करोड स्वर्णमुद्राके बराबर धन होगया. जिससे वे बडे श्रेष्ठी व सुश्रावक हुए. उन्होंने ज्ञानद्रव्य तथा साधारणद्रव्यकी भली भांति रक्षा तथा वृद्धि आदि करी । इस प्रकार उत्तमगतिसे श्रावक-धर्म-की आराधना कर तथा अन्तमें दीक्षा ले वे दोनों सिद्ध होगये। ज्ञानद्रव्य, देवद्रव्यकी भांति श्रावकको बिलकुल ही अग्राह्य
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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