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(३२२) पृथक् २ नौकरी करने लगे. जिसके यहां कर्मसार रहा था वह श्रेष्ठी कपटी व महाकृपण था. निश्चित किया हुआ वेतन भी न देकर "अमुक दिन दूंगा" इस तरह बारम्बार ठगा करता था. जिससे बहुत समय व्यतीत होजाने पर भी कर्मसारके पास द्रव्य एकत्र न हुआ। पुण्यसारने तो थोडा बहुत द्रव्य उपार्जन किया व उसे यत्नपूर्वक सुरक्षित भी रखा, परन्तु धूर्तलोग सब हरण कर लेगये । कर्मसारने बहुतसे श्रीष्ठयोंके यहां नौकरी करी, तथा किमिया, खनिवाद (भूमिमेंसे द्रव्य निकालने की विद्या) सिद्धरसायन, रोहणाचलको गमन करनेके लिये मंत्रसाधन, रुदन्तीआदि औषधिकी शोध इत्यादि कृत्य उसने सपरिश्रम ग्यारह बार किये, तो भी अपनी कुबुद्धिसे तथा विधिविधानमें विपरीतता होनेसे वह किचन्मात्र भी धन संपादन न कर सका. उलटे उपरोक्त कृत्योंमें उसको नानाप्रकारके दुःख भोगने पडे ।
पुण्यसारने ग्यारह बार धन एकत्र किया और उतनी ही बार प्रमादादिकसे खो दिया. अन्तमें दोनोंको बहुत उद्वेग उत्पन्न हुआ, और एक नौकापर चढ कर रत्नद्वीपको गये । वहांकी साक्षात् फलदाता एक देवीके सन्मुख मृत्यु स्वीकार कर दोनों बैठ गये. इस प्रकार सात उपवास होगये, तब आठवें उपवासके दिन देवीने कहा कि "तुम दोनों भाग्यशाली नहीं हो" देवीका वचन सुन कर्मसार उठ गया. और जब इकवीस