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________________ ( ३२१ ) परस्पर कलह न हो इस उद्देशसे धनावह श्रेष्ठीने अपनी संपत्ति दोनों पुत्रोंमें बांटकर उन्हें पृथकू २ रखे तथा स्वयं स्त्री के साथ दीक्षा ले स्वर्गको गया. कसार अपने स्वजनसंबंधियोंका वचन न मानकर अपनी कुबुद्धिसे ऐसे २ व्यापार करने लगा कि उनमें उसे धनहानि ही होती गई व थोडे दिनों में पिताकी दी हुई सर्व सम्पत्ति गुमादी. पुण्यसारकी संपत्ति चोरोंने लूट ली. दोनों भाई निर्धन होगये व स्वजन संबंधी लोगोंने उनका नाम तक छोड दिया. दोनोंकी स्त्रियां अन्न वस्त्र तकका अभाव हो जाने से अपने २ पियर चली गई। कहा है अलिअपि जणो घणवंतयस्स सयणत्तणं पयासेइ | आसण्णबंधवेणवि, लज्जिज्जइ झीणविहवेण ॥ १ ॥ लोग धनवान पुरुषके साथ अपना झूठ मूठ ही सम्बन्ध प्रकट करने लगते हैं और किसी निर्धन के साथ वास्तविक सम्बन्ध होवे तो भी उससे संबंध दिखाने में भी शरमाते हैं । धन चला जाता है, तब गुणवान पुरुषको भी उसके परिवार के लोग निर्गुणी मानते हैं और चतुरता आदि झूठे गुणोंकी कल्पना करके परिवार के लोग धनवान पुरुषोंके गुण गाते हैं । पश्चात् जब "तुम बुद्धिहीन हो, भाग्यहीन हो" इस तरह लोग बहुत निन्दा करने लगे, तब लज्जित हो दोनों जने देशान्तर चले गये, अन्य कोई उपाय न रहनेसे दोनों किसी बड़े श्रेष्ठ के यहां
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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