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________________ (३०८) ववचन,अरिहंत अथवा गुरू आदिकी अवज्ञा आदि उत्कृष्ट आशातनाएं सावद्यआचार्य, मरीचि, जमालि, कूलबालकआदिको जैसे अनन्त-संसारी करने वाली हुई, वैसे ही अनन्तसंसारकी करनेवाली जानो । कहा है कि उस्सुत्तभासगाणं, बोहीनासो अणंतसंसारो। पाणच्चएवि धीरा, उस्सुत्तं ता न भासंति ॥ २॥ तित्थयरपवयणसुअं, आयरिअं गणहरं महिड्डीअं । आसायंतो बहुसो, अणंतसंसारिओ होइ ॥ २ ॥ चेइअदम्वविणासे, इसिघाए पवयणस्म उड्डाहे । संजइचउत्थभंगे, मूलग्गी बोहिलाभस्स ॥ १ ॥ उत्सूत्रवचन बोलनेवालेके समकितका नाश होता है, और वह अनन्त संसारी होता है। इसलिये धीरपुरुष प्राणत्याग होते भी उत्सूत्र बचन नहीं बोलते । तीर्थकर भगवान, गणधर, प्रवचन, श्रुत आचार्य अथवा अन्य कोई महर्द्धिक साधु. आदिकी आशातना करनेवाला अनंतसंसारी होता है। इसी तरह देवद्रव्य, ज्ञानद्रव्य, साधारणद्रन्य और वस्त्रपात्रादि गुरुद्रव्य इनका नाश करे, अथवा नाश होता हो तो उपेक्षा आदि करे, तो भी भारी आशातना लगती है, कहा है कि आयाणं जो भंजइ, पडिवन्नधणं न देइ देवस्स | नस्संतं समुविक्खइ, सोऽवि हु परिभमइ संसारे ॥ ४ ॥ जिणपवयणवुद्धिकरं, पभावगं नाणसणगुणाणं ।
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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