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________________ ( २९८ ) और ज्ञान इत्यादिककी आशातना जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट ऐसी तीन प्रकारकी है । जिसमें पुस्तक, पटली, टिप, जपमाला आदिको थुंक लगाना, कम अथवा अधिक अक्षर बोलना, ज्ञानोपकरण पास होते हुए वायु संचार करना इत्यादिक जघन्य आशातना है । अध्ययनका समय न होने पर पढना, योग और उपधान तपस्या बिना सूत्रका अध्ययन करना, भांति से अर्थका अनर्थ करना, प्रमादवश पुस्तक आदि वस्तुको पग वगैरा लगाना, पुस्तक आदि भूमि पर पटक देना, ज्ञानोपकरण पास होते आहार अथवा लघुनीति करना, इत्यादिक मध्यम आशातना है । पाटली आदिके ऊपरके अक्षर कसे घिस कर मिटा देना, ज्ञानोपकरणके ऊपर बैठना, सो रहना इत्यादि, ज्ञानोपकरण पास होते बडीनीति आदि करना, ज्ञानकी अथवा ज्ञानीकी निंदा, दुश्मनी, नुकसान आदि करना, तथा उत्सूत्र भाषण करना, यह उत्कृष्ट आशातना है । जिनप्रतिमाकी तीन प्रकारकी आशातना इस प्रकार है:बालाकुंची इत्यादि पछाडना, जिन प्रतिमाको अपने विश्वासका स्पर्श कराना, अपने वस्त्र जिन प्रतिमाको अडाना इत्यादिक जघन्य आशातना है | बिना धोये हुए धोतियेसे जिनप्रतिमाकी पूजा करना, जिनबिंबको भूमिपर डालना इत्यादिक मध्यम आशातना है । पग लगाना, जिनप्रतिमाको नाकका मल अथवा धूंक आदि लगाना, प्रतिमाका भंग करना, प्रतिमाको उठा 1
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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