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________________ ( २९२ ) अद्भुत है. पश्चात् उसने पारणेके निमित्त उत्सुकता न रख कर उस दिन भी विधि अनुसार जिन-प्रतिमा की पूजा करी और उसके बाद पारणा किया. धर्मनिष्ठ पुरुषोंका आचार अपार आश्चर्यकारी होता है. उन चारों कन्याओंके जीव पूर्व, पश्चिम, दक्षिण व उत्तर इन चारों दिशाओं में स्थित देशों के चार राजाओंकी सबको बहुमान्य, बहुतसे पुत्रों पर कन्याएं हुई, उनमें पहिलीका नाम धर्मरति, दूसरीका धर्ममति, तीसरीका धर्मश्री और चौथीका ध र्मिणी नाम था, नामके अनुसार उनमें गुण भी थे. जब वे चारों तरुण हुई तो ऐसी शोभा देने लगीं मानो लक्ष्मी देवी ही ने अपने चार रूप बनाये हों. एक दिन वे अनेक सुकृतकारी उत्सवके स्थानरूप जिन मंदिर में आई और अरिहंतकी प्रतिमा देख कर जातिस्मरणज्ञानको प्राप्त हुई । जिससे " जिन प्रतिमाकी पूजा किये बिना हम भोजन न करेंगी " ऐसा नियम लेकर हमेशा जिनभक्ति करती रहीं. तथा उन चारों कन्याओंने एक दिल हो ऐसा नियम किया था कि, " अपन पूर्व भवका परिचित वर वरेंगी. " यह जान पूर्वदेश के राजाने अपनी पुत्री धर्मरतिके लिये स्वयंवर मंडप किया, व उसमें समग्र राजाओंको निमंत्रित किया. पुत्र सहित राजधर राजाको आमंत्रण आया था, तो भी धर्मदत्त वहां नहीं गया. कारण कि उसने विचारा कि " जहां फल प्राप्ति होने न होने का निश्चय नहीं ऐसे कार्य में कौन दौडता
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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