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________________ __ (२८४) करने आवे, और ऐसी भावना भावे कि, "जानवरकी भांति निशिदिन परतंत्रतामं रहनेसे जिसको नित्य भगवानको वन्दना करनेका नियम भी नहीं लिया जाता, ऐसे मुझ अभागेको धिक्कार है." अस्तु, कृपराजा, चित्रमति मंत्री, वसुमित्र श्रेष्ठी और सुमित्र वणिकपुत्र इन चारों व्यक्तियोंने चारण-मुनिके उपदेशसे श्रावक-धर्म ग्रहण किया और क्रमशः वे सौधर्मदेवलोकको गये । धन्य भी अरिहंत पर भक्ति रखनेसे सौधर्मदेवलोकमें महर्द्धिक देवता हुआ और वे चारों मालीकी कन्याएं उसके ( धन्यके ) मित्र देवता हुई. कृपराजाका जीव देवलोकसे पतित हो, जैसे स्वर्गमें देवराज इन्द्र है, वैसे वैताठ्य पर्वत पर स्थित गगनवल्लभ नगरमें चित्रगति नामक विद्याधरोंका राजा हुआ। मंत्रीका जीव देवलोकसे निकल कर चित्रगतिका पुत्र हुआ। उस पर मातापिता बहुत ही स्नेह करने लगे। वापसे भी अधिक तेजस्वी उस पुत्रका नाम विचित्रगति रखा। विचित्र गतिने यौवनावस्थामें आकर एक समय राज्यके लोभवश अपने वापको मार डालनेके लिये मजबूत व गुप्त विचार किया । धिक्कार है ऐसे पुत्रको ! जो लोभान्ध हो पिताका अनिष्ट चितवन करे ! सुदैव वश गोत्रदेवीने वह सर्व गुप्त विचार चित्रगतिको कहा. अचानक भय आनेसे चित्रगतिको उसी समय उज्वल वैराग्य प्राप्त हुआ, और वह विचार करने लगा कि, हाय हाय ! अब मैं क्या करूं ? किसकी शरणमें जाऊं? किसको
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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