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________________ ( २८३ ) श्रेष्ठत्व आता हो तो उसका अन्त अरिहंत ही में आना योग्य है. कारण कि, अरिहंत त्रिलोक में पूज्य हैं. अतएव तीनों लोकमें उत्तम ऐसे अरिहंत ही को यह कमल धारण करना योग्य है. इस लोक तथा परलोकमें वांछित वस्तुकी दाता वह अरिहंतकी पूजा एक नवीन उत्पन्न हुई कामधेनुके समान है. " भद्रक स्वभाव वाला धन्य, चारण- मुनिके वचन से हर्षित हुआ, व पवित्र हो जिन-मंदिरको जा उसने वह कमल भावसे छत्रके समान भगवान् के मस्तक पर चढाया. उस कमलसे भगवान्का मस्तक इस तरह सुशोभित होगया मानो मुकुट पहिराया हो. उससे धन्यको बहुत ही आनन्द उत्पन्न हुआ. पश्चात् वह स्वस्थ चित्त कर क्षणमात्र शुभभावनाका ध्यान करने लगा. इतने में मालीकी वे चारों कन्याएं फूल बेचनेके लिये वहां आई. उन्होंने धन्यका चढावा हुआ कमल भगवान् के मस्तक पर देखा. इस शुभ कर्मको अनुमोदना दे, उन चारोंने संपत्तिका मानो बीज ही हो ऐसा एक एक श्रेष्ठ फूल उसी समय प्रतिमा पर चढाया. ठीक है, शुभ अथवा अशुभ कर्म करना, पढना, गुणना, देना, लेना, कोईको मान देना, शरीर सम्बंधी अथवा घर सम्बंधी कोई कार्य करना, इत्यादि कृत्यों में भव्य जीवकी प्रवृत्ति प्रथम भगवानका दर्शन कर ही के होती है । तदनंतर अपने जीवको धन्य मानता धन्य और वे चारों कन्याएं अपने २ घर गये. उस दिन से धन्य यथाशक्ति नित्य भगवान्को वन्दना
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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