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________________ (२८१) बच्चेकी भांति क्रीडा करते उसे दिव्यकमलके समान अत्यन्त सुगन्धित सहस्रपखडी वाला कमल मिला. उसे ले सरोवरमेंसे बाहर निकल हर्षसे धन्य चलता हुआ. मागेमें फूल उतार कर जाती हुई मालीकी चार कन्याएं उसको मिली. पूर्व परिचित होने से उन कन्याओंने कमलके गुण जान कर धन्यको कहा कि " हे भद्र ! भद्रशाल बनके वृक्षका फूल जैसे यहां दुर्लभ है, वैसे ही यह कमल भी दुर्लभ है । यह श्रेष्ठ बस्तु श्रेष्ठपुरुषों ही के योग्य है, इसलिये इसका उपयोग ऐसे वैसे व्यक्ति पर मत करना ” धन्यने कहा “ इस कमलका उत्तम पुरुष ही पर मुकुट के समान उपयोग करूंगा ।" पश्चात् धन्यने विचार किया कि, “ सुमित्र ही सर्व सज्जनोंमें श्रेष्ठ है, और इसीलिये वे मेरे पूज्य हैं । " जिसकी आजीविका जिस मनुष्यसे चलती हो उसे उस मनुष्यके अतिरिक्त क्या दुसरा कोई श्रेष्ठ लगता है ? अस्तु, सरलस्वभाव धन्यने ऐसा विचार कर जैसे किसी देवताको भेंट करना होवे, वैसे सुमित्रके पास जा विनय पूर्वक नमस्कार कर यथार्थ बात कह कर उक्त कमल भेट किया । तब सुमित्र ने कहा कि, "मेरे सेठ वसुमित्र सर्व लोगों में उत्कृष्ट हैं । उन्हींको यह उत्तम वस्तु वापरने योग्य है । उनके मुझ पर इतने उपकार हैं कि, मैं अहनिशि उनका दासत्व करूं तो भी उनके ऋणसे मुक्त नहीं हो सकता।" सुमित्रके ऐसा कहने पर धन्यने वह कमल वसुमित्र
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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