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________________ (२७९) " क्षण पाया । प्रीतिमती इतना कह ही रही थी कि इतनेमें रोगी म नुष्यकी भांति वह बालक अकस्मात् आई हुई मूर्छा तत्काल बेहोश होगया और उसके साथ ही प्रीतिमती भी असह्यदुःखसे मूर्छित हो गई । तुरन्त ही परिवार तथा समीप के लोगोंने ' दृष्टिदोष अथवा कोई देवताकी पीडा होगी' ऐसी कल्पना कर बडे खेदसे ऊंचे स्वरसे पुकार किया कि, “ हाय २ ! ! माता व पुत्र इन दोनों को एकदम यह क्या होगया ? मात्र में राजा, प्रधान आदि लोगोंने वहां आकर दोनों मातापुत्रको शीतल उपचार किये जिससे थोडी देर ही में बालक व उसके बाद उसकी माता भी सचेत हुई । पूर्वकर्मका योग बडा आश्चर्यकारी है । उसी समय सर्वत्र इस बातकी बधाई हुई, राजपुत्रको उत्सव सहित घर ले आये, उस दिन राजपुत्र की रात्रियत ठीक रही, उसने बार बार दूध पान आदि किया, परंतु दूसरे दिन शरीरकी प्रकृति अच्छी होते अरुचिवाले मनुष्यकी भांति उसने दूध न पिया और चौबिहार पच्चखान करनेवाले की तरह औषध आदि भी नहीं लिया। जिससे राजा, रानी, मंत्री तथा नगरवासी आदि बडे दुःखित हुए; सब किंकर्त्तव्यविमूढ होगये । इतने में मानो उस बालक के पुण्य ही से आकर्षित हुए हों ऐसे एक मुनिराज मध्यान्हके समय आकाशमेंसे उतरे । प्रथम परमप्रीति से बालकने, पश्चात् राजाआदि लोगोंने मुनिराजको वन्दना करी । राजाने बालकके दूध आदि त्याग देने
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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