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________________ (२७०) और भगवानकी स्तुति करनेसे अनन्त पुण्य पाता है । प्रमाजैन करते सौ उपवासका, विलेपन करते सहस्र उपवासका, माला पहिराते लक्ष उपवासका, और गीत, वादित्र पूजा करते अनन्त उपवासका फल पाता है। पूजा प्रतिदिन तीन वार करनी चाहिये । कहा है कि . प्रातःकालमें की हुई जिनपूजा रात्रिमें किये हुए पापोंका नाश करती है, मध्यान्हसमयमें की हुई जिनपूजा जन्मसे लेकर किये हुए पापोंको नष्ट करती है, और सन्ध्यासमय की हुई जिनपूजा सात जन्मके किये हुए पापोंको दूर करती है। जलपान, आहार, औषध, निद्रा, विद्या, दान, कृषि ये सात वस्तुएं अपने अपने समय पर हो तो श्रेष्ठ फल देती है। वैसे ही जिनपूजा भी अवसर पर ही करी होवे तो सत्फल देती है। त्रिकाल जिनपूजा करनेवाला भव्यजीव समकितको शोभित करता है, और श्रेणिकराजाकी भांति तीर्थकर नामगोत्रकम उपार्जन करता है । जो पुरुष दोष रहित जिन-भगवान्की त्रिकालपूजा करता है, वह तीसरे अथवा सातवें आठवें भवमें सिद्धि सुख पाता है । चौसठ इन्द्र परम आदरसे पूजा करते हैं, तो भी भगवान यथार्थ नहीं पूजे जाते । कारण कि भगवानके गुण अनन्त हैं । हे भगवन् ! हम आपको नेत्रसे देख सकते नहीं, और उत्तमोत्तम पूजासे परिपूर्णतः आपकी आराधना भी नहीं कर सकते; परन्तु गुरुभक्ति रागवश व आपकी आज्ञा पालनेके
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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