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________________ कराती और अन्य रानियोंकी पूजा आदिसे द्वेष करने लगी। बडे खेदकी बात है कि, मत्सर कैसा दुस्तर है ? कहा है कि 'पोता अपि निसज्जंति, मत्सरे मकराकरे । तत्तत्र मज्जनेऽन्येषां, दृषदामिव किं नवम ? ॥१॥ . विद्यावाणिज्यविज्ञानवृद्धिऋद्धिगुणादिषु । जाती ख्याती प्रोन्नती च, धिर धिग् धर्मेऽपि मत्सरः ॥२॥ मत्सररूप सागरमें ज्ञानीपुरुषरूप नौका भी डूब जाती है। तो फिर पत्थरके समान अन्य जीव डूब जावें इसमें क्या विशेपता है ? विद्या, व्यापार, कलाकौशल, वृद्धि, ऋद्धि, गुण, जाति, ख्याति, उन्नति इत्यादिकमें मनुष्य, मत्सर ( अदेखाई ) करें वह बात अलग है, परंतु धर्ममें भी मत्सर करते हैं ! उन्हें धिकार है !!! । सपत्नियां सरल स्वभाव होनेसे वे सदैव कुंतला रानीके पूजादि शुभकर्मको अनुमोदना देती थी, मत्सरसे भरीहुई कुंतला रानी तो दुर्दैववश असाध्यरोगसे पीडित हुई, राजाने उसके पासकी आभरणादि सर्व मुख्य २ वस्तुएं ले ली, पश्चात् वह बडी असह्यवेदनासे मृत्युको प्राप्त हो सपत्नियोंकी पूजाका द्वेष करनेसे कुत्ती हुई, वह पूर्वभवके अभ्याससे अपने चैत्यके द्वारमें बैठ रहती थी. एक समय वहां केवलीका आगमन हुआ. रानियोंने केवलीसे पूछा कि, 'कुंतला रानी मरकर किस गतिको गई ? केवलीने यथार्थ बात थी सो कह दी. जिससे रानियोंके मनमें बहुत वैराग्य उत्पन्न हुआ. वे नित्य
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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