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वान्का समवसरण हुआ । भिल्लके पूछने से भगवानका कहा हुआ " या सा सा सा का" सम्बन्ध सुन कर मृगावती रानी तथा चंडप्रद्योतकी अंगारवती आदि आठ पत्नियोंनें दीक्षा ली । इस प्रकार विधि अविधिके ऊपर दृष्टांत कहा ।
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इसके ऊपरसे " अविधि से करनेकी अपेक्षा न करना उत्तम है " ऐसे विरुद्धपक्षकी कल्पना न करना । कहा है कि"अविहिकया वरमकयं, असूयवयणं भणति समथन्नू । पायच्छित्तं अकए, गुरुअं वित कए लहुअं || ४ ॥ अविधि करना, उसकी अपेक्षा न करना यही ठीक हैं, यह वचन गुणको भी दोष कहने वाला है ऐसा सिद्धांत ज्ञाता आचार्य कहते हैं । कारण कि न करनेसे बहुत प्रायश्चित्त लगता है, और अविधि से करने में थोडा लगता है, इसलिये धर्मानुष्ठान नित्य करना ही चाहिये । पर उसमें पूर्णशक्ति से विधी सम्हालनेकी यतना रखना यही श्रद्धावन्त जीवोंका लक्षण है। कहा है कि श्रद्धावंत और शक्तिमान् पुरुष विधि ही से सर्व धर्म क्रियाएं करता है, और कदाचित् द्रव्यादि दोष लगे तो भी वह “विधि ही से करना " ऐसा विधि ही के विषय में पक्षपात रखता है । धन्नाणं विहिजोगो, विहिपक्खाराहगा सया धन्ना | विद्दिवमाणी धन्ना, विहिपक्व अदूसगा धन्ना ॥ १ ॥ आसन्न सिद्धिआणं, विहिपरिणामो उ होई सयकालं | विद्दिचाओ अविभित्ती, अभत्र्वजिअदूरभव्वाणं ॥ २ ॥